शिक्षा का गिरता हुआ स्तर और विद्यार्थियों द्वारा उसका दुरूपयोग

रश्मि हरकानी
शिक्षा आज के समाज का आधार स्तम्भ है। शिक्षा ही वह सशक्त माध्यम है जिसके द्वारा किसी भी सफल विकसित देश के योग्य नागरिकों का निर्माण होता है। अत: किसी राष्ट्र अथवा समाज के सर्वांगींण विकास के लिए नैतिक मूल्यों पर आधारित उत्तम शिक्षा का होना आवश्यक है और उत्तम शिक्षा तब ही हो सकती है जब देश की शिक्षा प्रणाली उत्तम हो। देश के विकास में कदम-कदम पर आने वाली बाधाओं का मुख्य कारण शिक्षा का गिरता हुआ स्तर है, जिसका शिकार हमारे आज के युवा छात्र हैं।
प्राचीन शिक्षा प्रणाली की भाँति गुरू व शिष्य दोनों में ही कर्तव्य पालन का अभाव दृष्टिगोचर होता है। यही कारण है कि गुरू और शिष्य के संबंधों में दरार दिखाई देती है। गुरू केवल धनोपार्जन के लिए शिक्षा देता है तो शिष्य केवल डिग्री प्राप्त करना चाहता है। आज की शिक्षा प्रणाली का उद्देश्य देश को उत्तम नागरिक देना नहीं बल्कि क्लर्क अथवा शासन तंत्र के पुर्जे तैयार करना है। उसमें ऐसे विषयों का समावेश है जिसमें विद्यार्थी की कोई रूचि नहीं है और जीवन में उनकी कोई उपयोगिता भी नहीं है।

आधुनिक उद्देश्यहीन शिक्षा नाविकहीन नौका के समान है जो धारा के साथ बहती हुई किसी भी किनारे पर जा टकराती है। आज अधिकांश विद्यार्थी केवल नौकरी पाने के उद्देश्य से पढ़ रहे हैं। उनमें नैतिकता प्रधान मूल्यों की कमी है। महात्मा गाँधी ने कहा था- सच्ची शिक्षा का अर्थ है चरित्र निर्माण, यदि शिक्षा चरित्र निर्माण नहीं कर सकती तो मैं उसे कुशिक्षा कहूँगा।
आज की शिक्षा में छात्रों को किसी कला अथवा उद्योग से संबंधित शिक्षा दी जाती है। जिसके माध्यम से वे अपने समय का सदुपयोग कर आत्मनिर्भर बन सकें। आज के युवा सड़कों पर नारेबाजी और हल्ला करते देखे जा सकते हैं। आरक्षण के माध्यम से कितने ही प्रतिभावान विद्यार्थी अपनी प्रतिभा को नष्ट होते देखने पर मजबूर हैं। परिणामस्वरूप वे अपने लक्ष्य से भटक रहे हैं।

वास्तव में शिक्षा प्रणाली ऐसी होनी चाहिए कि वह छात्रों के सम्पूर्ण व्यक्तित्व के विकास में सहायक हो। साथ ही एक अच्छा नागरिक चुनने में सहायक हो, तभी शिक्षा का स्तर ऊँचा उठेगा और राष्ट्र व समाज का कल्याण होगा।