वर्तमान शिक्षा प्रणाली एवं उसके परिणाम - एक विश्लेषण...

बड़े स्कूलों के बड़े प्रिंसिपल सा’ब... किस काम के
शिक्षाविद् डॉ. सीए प्रमोद कुमार जैन
हर परिवार चाहता है कि उसके बच्चे अच्छे स्कूल में पढ़ें। अपने बजट के हिसाब से लोग अच्छे से अच्छा स्कूल चुनने की कोशिश करते हैं। स्कूल का चयन करते समय इस बात पर विशेष ध्यान दिया जाता है कि वहां के प्रिंसिपल कौन हैं। प्रिंसिपल के नाम को ब्रांड नेम की तरह स्कूल भी उपयोग करते हैं। इसीलिए भारी-भरकम डिग्रियों वाले प्रिंसिपल की नियुक्ति बड़े और मंहगे स्कूलों में की जाती है और अपने बच्चों को एडमिशन दिलाने के लिए आने वाले पेरेंट्स को भी बताया जाता है कि हमारे स्कूल में अमुक शख्स प्रिंसिपल हैं। वे फलां-फलां स्कूलों में प्रिंसिपल रह चुके हैं। पेरेंट्स इससे प्रभावित होते हैं और महंगी फीस चुकाते हुए स्कूल में बच्चों का एडमिशन करा देते हैं। उन्हें लगता है कि बच्चों का भविष्य अब सुरक्षित हाथों में है लेकिन वे एक खास बात तो यहां भूल ही जाते हैं ...और यही वह खास बात है जिस पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए कि प्रिंसिपल साहब हर सप्ताह में कौन-कौन सी क्लास में कितने पीरियड लेकर बच्चों को पढ़ाते हैं। इतने वरिष्ठ शिक्षाविद् स्कूल में मौजूद हैं तो उनके ज्ञान का लाभ बच्चों को तो मिलना ही चाहिए। पेरेंट्स यदि इस सवाल का जवाब ढूंढेंगे तो उन्हें जवाब नहीं मिल पाएगा। कारण कि अधिकांश स्कूलों में प्रिंसिपल केवल ब्रांड नेम और चेहरा दिखाने के लिए ही नियुक्त किए जाते हैं। वे कभी पढ़ाते नहीं हैं और केवल एडमिनिस्ट्रेशन का काम ही देखते हैं अर्थात उनके ज्ञान का लाभ स्टुडेंट्स को बिलकुल भी नहीं मिल पाता है। कई सालों तक एडमिनिस्ट्रेशन और केवल एडमिनिस्ट्रेशन देखते रहने के कारण ये शिक्षाविद् ब्रांड नेम और स्कूल का चेहरा बन कर ही रह जाते हैं। वे अपने मूल कार्य अर्थात पढ़ाने से इतने दूर हो चुके हैं कि यदि उन्हें अब किसी बड़ी क्लास को पढ़ाने के लिए कह दिया जाए तो शायद ही वे नियमित रुप से पढ़ा पाएंगे क्योंकि पढ़ाने के लिए पढ़ने की जरूरत भी होती है लेकिन यहां तो पढ़ने से दूर-दूर तक नाता ही नहीं है। ...इसलिए पेरेंट्स से निवेदन है कि बड़े स्कूलों में एडमिशन कराते समय इस बात पर भी जरूर ध्यान दें कि भारी-भरकम डिग्री वाले प्रिंसिपल साहब हर दिन कितने पीरियड लेते हैं और कौनसे सब्जेक्ट्स किस क्लास में पढ़ाते हैं?