Rashtriya Pioneer Pride: 12 ग्लास पानी पिएं कि नीचे ना बैठें 12 ग्लास पानी पिएं कि नीचे ना बैठें ================================================================================ Dilip Thakur on 29/12/2017 20:36:00 आयोकॉन 2017 : जितने डॉक्टर उतनी नई सलाह इंदौर। तकनीक के इस युग में स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता में भी काफी सुधार हुआ है। इस गुणवत्ता के साथ साथ स्वास्थ्य का बाजार भी तैयार हुआ है। यह इतना बड़ा बाजार है कि इससे न तो अस्पताल अछूते रहे हैं और ना ही भगवान स्वरुप डॉक्टर। इस बाजार का बहाव जिधर होता है सभी उधर होते हैं। देश में जिस तरह से आधुनिक स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर बातें होती हैं तब उसके साथ हम यह देखना भूल जाते हैं कि इसके पीछे कौन सी ताकते है और आखिर यह सब कुछ क्यों हो रहा है। शहर में देशभर के हड्डीरोग विशेषज्ञ जुटे हैं जिनमें अनुभव प्राप्त हड्डी रोग विशेषज्ञों से लेकर आधुनिक तकनीक की बात करने वाले युवा डॉक्टर भी हैं। हड्डी रोगों को लेकर सभी के अलग अलग तरह के बयान आए और सभी अपनी अपनी ढपली अपना अपना राग की तर्ज पर अपनी बातें कहने में ज्यादा रुचि ले रहे हैं। दरअसल हो यह रहा है कि प्रतिदिन मीडिया में नित नई बातें आ रही हैं मसलन रोजाना 12 ग्लास पानी पिएं और रीढ़ की हड्डी संबंधी रोगों को दूर भगाएं...या 50 की उम्र के बाद नीचे बिल्कुल ना बैठें क्योंकि इससे घुटनों पर जोर पड़ता है आदि। पौने दो लाख घुटने के आॅपरेशन प्रति वर्ष क्या देशवासियों के घुटने एकाएक खराब होना आरंभ हो गए, क्या कारण है कि घुटनों के आॅपरेशनों की संख्या एकाएक बढ़ गई और डॉक्टरों के अनुसार ही यह संख्या जल्द ही ढाई लाख आॅपरेशन प्रतिवर्ष होने लगेगी। आखिर इसका कारण क्या है? क्या हम लोग बहुत ज्यादा नीचे बैठने लगे है या बैठते नहीं हैं? प्रश्न बहुत सारे हैं और जिस प्रकार से इंटरनेट से लेकर सोशल मीडिया पर लगातार स्वास्थ्य संबंधी पोस्ट लगातार चलते रहते हैं उससे आम जनता भ्रमित हो जाती है। सब कुछ बाजार पर निर्भर करता है आयोकॉन में भाग लेने आए कुछ वरिष्ठ चिकित्सकों के अनुसार अब स्वास्थ्य संबंधी सब कुछ कंपनियों पर निर्भर करता है। ये कंपनियां इतनी अमीर हैं कि बाजार को अपने अनुसार चलाने का माद्दा रखती हैं। अचानक घुटनों के आॅपरेशन क्यों बढ़ गए इस प्रश्न पर जवाब यही था कि जिस तरह से पहले हार्ट के लिए बायपास सर्जरी, स्टंट का बाजार था अब घुटनों का बाजार विकसित हो गया है। भारतीय पद्धतियां अब भी श्रेष्ठ हैं और नीचे ना बैठने का तर्क समझ से परे है। क्या पुराने जमाने में लोग नीचे नहीं बैठा करते थे और शौच करने के लिए कमोड पर बैठने से भी तकलीफें बढ़ी हैं। पुराने जमाने में भारतीय संत महात्मा वर्षों तक साधना तपस्या करते थे तब भी घुटने मोड़ कर बैठते थे तब कुछ नहीं होता था। हम आलसी हो गए हैं और चलना फिरना, व्यायाम और काम करना नहीं चाहते इस कारण इस प्रकार की नई बाते सामने आ रही हैं। पहले के जमाने में नीचे बैठकर ही खाना खाते थे डायनिंग टेबल संस्कृति कहां थी। पहले हम अपने काम करने के लिए साइकिल चलाते थे अब घुटने ठीक रहे इसके लिए साइकिल चलाते हैं। आम व्यक्ति को न केवल रोजाना व्यायाम करना चाहिए बल्कि देशी पद्धतियां सर्वश्रेष्ठ हैं इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए।