Rashtriya Pioneer Pride: संसद में राजनीतिक समझ का स्तर भी कम हो रहा है संसद में राजनीतिक समझ का स्तर भी कम हो रहा है ================================================================================ Dilip Thakur on 26/07/2019 12:22:00 हल्ला मचे ऐसे बयानों की अधिकता क्यों (अनुराग तागड़े) चुनावों के दौरान शाब्दिक मर्यादाओं को लांघ कर बातें बोली गईं और मीडिया में भी बहुत छाई रहीं। चुनाव के पश्चात कई युवा सांसदों ने शपथ ली और कई सांसद पहली बार ही संसद की सीढ़ियाँ चढ़े हैं। ऐसे में देश के विभिन्न क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करने वाले नेताओं के संसद में बयान और उनकी भाव भंगिमाएं देखकर यह लगता है कि उनमें राजनीतिक समझ का अभाव है। संसद में जिस प्रकार से बयानों पर बच्चों जैसी हरकतें करना अपने आप में यह बताता है कि वैचारिक स्तर पर कितना खोखलापन है। आज भी संसद में ऐसे ज्ञानी और अनुभवी सांसद हैं जो संसदीय परंपराओं का निर्वहन कर रहे हैं और देश की समृद्ध संसदीय संस्कृति को आगे बढ़ा रहे हैं परंतु कुछ सांसद मीडिया का ध्यान बंटोरने के लिए इस प्रकार की बातें करते हैं जिससे न केवल संसदीय परंपराओं को धक्का पहुंचता है बल्कि देश की जनता तक गलत संदेश भी पहुंचता है। चाहे शपथ लेने की ही बात हो नारे लगाना या अपने नेता का नाम लेकर जयकारे लगाना कहां तक शोभा देता है। आप जीत गए हैं, आप सांसद हैं इसके बाद तो अपना आचरण बदलिए। संसद की बहस में भी गरिमा अनुरुप बातें नहीं हो रही हैं। पक्ष और विपक्ष दोनों ही भारत-पाक युद्ध की तरह बहस करते हैं जैसे कोई वाद-विवाद प्रतियोगिता चल रही हो। विपक्ष का भी कोई सांसद अगर अच्छी और सच्ची बात बोल रहा है तब पक्ष के सांसद तारीफ क्यों नहीं करते और यही बात विपक्ष पर भी लागू होती है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बेतुके बयान की बात हो या फिर तीन तलाक के मुद्दे पर बहस हो गंभीरता और कुछ नएपन की बात सामने नहीं आती। यह बात भी जनता के सामने लाना चाहिए कि संसद की कार्रवाई के पूर्व सभी सांसदों के घरों पर कितनी सामग्री संबंधित विषय के बारे में जाती है। कितने प्रिंट आउट और कितने रेफरेंस जाते हैं, क्या सांसदों को उन्हें पढ़ने का मौका मिल पाता है और क्या वाकई वे उन्हें पढ़ने के इच्छुक होते हैं। कितने ऐसे सांसद हैं जो तैयारी करके संसद में बोलते हैं या जिनकी इच्छा भी होती है कि वे संसद में बोलें। केवल समस्याओं को लेकर प्रश्न पूछना ही संसद में अपनी भूमिका निभा आने जैसा नहीं है बल्कि सभी मुद्दों पर अपनी राय तथ्यों के अनुरुप रखना भी सांसदों की जिम्मेदारी है। यह राजनीतिक समझ कम होने का परिणाम ही है कि देश के सांसद ऐसे बयान दे देते हैं जिससे हल्ला मचे और बाद में उनसे पलट भी जल्दी चले जाते हैं। संसद भवन में पहुंचने वाले पहली बार के सांसदों के लिए निश्चित रुप से कार्यशालाओं का आयोजन भी होता है पर इनका असर कितना पड़ता है यह देखने योग्य है।