Rashtriya Pioneer Pride: उपहार नहीं आपका समय चाहिए उपहार नहीं आपका समय चाहिए ================================================================================ Anurag Tagde on 27/11/2017 10:28:00 पैसा कमाने की होड़ में हम यह भूल जाते है कि हम किसके लिए पैसा कमा रहे है। महंगे उपहारों से हम अपने बच्चों को लाद देते है पर कभी आपने सोचा है कि आपका अपने बच्चों के साथ संवाद का स्तर क्या है? शहर में लगातार अवसाद से ग्रसित बच्चों के आत्महत्या की घटनाएं सामने आ रही है। एमबीए कर रही छात्रा हो या जरा सी बात पर याने दसवीं की पढ़ाई के दबाव में आकर बच्चें वो कर रहे है जिसकी कल्पना भी हम नहीं कर सकते। आधुनिक गैजेट्स से लैस इन बच्चों को अपना अलग ही विश्व रचने की छूट हम ही देते है। इस विश्व में वे ही है और अकेले है। हमने उन्हें इन गैजेट्स के भरोसे छोड़ दिया है जिसके कारण वे आभासी विश्व में अपनी कल्पनाओं को आकार देते रहते है। क्या भौतिकवादी दुनिया में अपने लिए पैसे जोड़ते समय कभी यह सोचा है कि हम थोड़े पैसे कम कमाएंगे पर बच्चों के साथ समय बिताएंगे। यह प्रश्न मन में आते ही सुख सुविधा और भोगवादी संस्कृति की ओर हम सोचने लगते है और तुलना करने लगते है कि हमारे साथ के अन्य लोग कितने आगे निकल गए और हम कहा पर है। पैसा कमाने की होड़ में हम यह भूल जाते है कि हम किसके लिए पैसा कमा रहे है। महंगे उपहारों से हम अपने बच्चों को लाद देते है पर कभी आपने सोचा है कि आपका अपने बच्चों के साथ संवाद का स्तर क्या है? या आप अपने बच्चों के साथ कितना संवाद करते है? यह प्रश्न दोनों माता पिता पर लागू होता है। इतनी छोटी कक्षा के बच्चें अवसाद में चले जाते है क्यों? क्योंकि उनके साथ संवाद करने वाला ही कोई नहीं रहता वे एकाकीपन महसूस करते है। अगर वे गुस्सा होते है तब उपहार दे दिए जाते है या बड़े से होटल में वीकेंड मना लिया जाता है पर उनके मन की बात को कोई समझ नहीं पाता है जिसके कारण वे अवसाद में आ जाते है और तरह तरह की हरकते करने लगते है। शहर में इस प्रकार से आत्महत्याओं का दौर लगातार बढ़ता जा रहा है और अगले वर्ष मार्च के बाद परीक्षाओं का दौर भी चल रहा है जिसके बाद भी इस प्रकार की परिस्थितियां उभरती है। हमें इस ओर गंभीरता के साथ ध्यान देने की जरुरत है।