भक्ति का बीजारोपण होना अपने आप में कठिन प्रक्रिया है। हम भक्त है या हम भक्ति करते है यह कहना बेहद आसान है और इसका आडंबर करना मनुष्य को खूब आता है। भक्ति सहज सरल हो इसका प्रयास कम ही करते है क्योंकि वे दिखावे और आडंबर के आवरण में ढंकी भक्ति को देखते है और उसे ही सच मान लेते है। भगवा वस्त्र, कमंडल, गले में माला याने भक्ति अगर कोई मान ले तो यह सरासर स्वयं के साथ नाइंसाफी करने जैसा है। मनुष्य जैसा देखता है वैसी ही बाते अंगीकार करता है उसकी परवरिश, वातावरण और रहन सहन का असर उसपर सबसे ज्यादा पड़ता है। भक्ति के बीज सभी में होते है परंतु उनका अंकुरण सभी में नहीं हो पाता। कई लोग भक्ति के मामले में सूखे होते है वे मर्म को जान नहीं पाते और भक्ति के बीज पर अध्यात्म की कुछ बुंदे गिरने के बाद वह जागृत तो होता है परंतु आडंबर के फेर में फंस जाता है वह भगवान और भक्त के बीच की कड़ी बनने से पहले ही अपनी भक्ति को सौदेबाजी में लगा देता है जैसा पाएंगे वैसी भक्ति करेंगे की तर्ज पर वह भगवान को अपना बिजनेस पाटर्नर तक बना लेता है कि चलो भगवान बिजनेस करेंगे लाभ हुआ तो बीस प्रतिशत आपका। भगवान भी आश्चर्य में पड़ जाते हैं 20 प्रतिशत की राशि को देखते हुए कि वाह रे इंसान भक्ति पूंजी अर्पित करने की बजाए भौतिक पूंजी अर्पित कर रहा है जरा अपनी सोच बदल। लोगों ने अपनी सोच तो नहीं बदली पर इस सौदेबाजी की चक्कर में कई मंदिरों की खूबसूरती बढ़ गई क्योंकि किसी ने मंदिर परिसर में टाईल्स लगाने का सौदा किया ओर अधिकांश लोगों ने घंटियां लगाने से लेकर मुकुट और ढेर सारी वस्तुओं का सौदा किया है। अब भक्ति की गंभीरता को समझे बगैर आभासी भक्ति करने वाले भक्तों को भी भगवान निराश नहीं करते क्योंकि कहीं न कहीं भक्ति तो है। इस भक्ति के चोले में सच झूठ सभी कुछ होता है पर मूल में भक्ति नहीं होती क्योंकि आडंबर की आड़ में भक्ति गायब हो जाती है और भौतिकता उभर आती है। ऐसी भौतिकता जो धर्म में रंगी होती है जिसमें अहं भाव होता है, मैं होता है। मैंने मंदिर की टाईल्स लगवाई है क्योंकि मैंने भगवान से सौदा किया है। असल भक्ती के बीज पलटते नहीं हैं क्योंकि भक्ति निरागस होती है बिल्कुल बच्चों के मन की तरह और यह वैसी ही तब बनी रहती है जब गुरु का असल आशीर्वाद हो...कृपा हो। भक्तबीज अगर पलट जाए तब गुरु पर भी प्रश्नचिन्ह उठते हैं और भक्त तो भक्त रहता ही नहीं। भक्ति के बीज कब पड़े, कैसे पड़े और किस पर पड़े यह सब कुछ गुरु पर ही निर्भर करता है और असल गुरु की खोज यह आध्यात्म की पहली सीढ़ी है। अगर आपकी खोज सही साबित हुई तब भक्ति के बीज भी जल्दी पड़ जाएंगे और फिर अंकुरण भी जल्द होगा।
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