योग्यता का आधार डिग्री नहीं ज्ञान हो...

योग्यता का आधार डिग्री नहीं ज्ञान हो...

शिक्षाविद् डॉ. सीए प्रमोद कुमार जैन

वर्तमान शिक्षा प्रणाली को लेकर तरह-तरह के विश्लेषण होते रहते हंै लेकिन सुधार कहीं नजर नहीं आता। युवा भी डिग्री हाथ में आने के बाद शिक्षा प्रणाली की खामियां गिनाते नजर आते हैं अर्थात सिस्टम में कहीं न कहीं भारी गड़बड़ी है। आज हम इसी बारे में बात करते हैं। शिक्षा प्रणाली में असमंजस का एक बड़ा मुद्दा यह है कि इस बात का निर्धारण ही नहीं किया जा सका है कि योग्यता जरूरी है अथवा ज्ञान। हम बात कर रहे हैं युवाओं को पढ़ाने वालों के बारे में। हमारी शिक्षा प्रणाली में हर क्लास के बच्चों को पढ़ाने वालों की शैक्षणिक योग्यता तय कर दी गई है। निर्धारित शैक्षणिक योग्यता को पूर्ण करने वालों को पढ़ाने का दायित्व सौंप दिया जाता है। सबसे बड़ा पेंच यहीं पर है। शैक्षणिक योग्यता तो देख ली लेकिन अनुभव और ज्ञान की योग्यता पर ध्यान ही नहीं दिया। केवल डिग्री हासिल करने का मतलब यह नहीं है कि संबंधित व्यक्ति पढ़ाने के लिए योग्य हो चुका है। गणित विषय पढ़ाने के लिए यदि एमएससी की डिग्री जरूरी है तो यह भी तो देखें कि डिग्री हासिल करने वाले को गणित का कितना ज्ञान है। इंजीनियरिंग की डिग्री लेने वाले युवा को यदि गणित का अच्छा ज्ञान है तो भी उसे स्टुडेंट्स को क्लास में पढ़ाने की अनुमति नहीं दी जाती क्योंकि शासन द्वारा निर्धारित डिग्री वाले को ही अनुमति मिलेगी अर्थात जिसे ज्ञान अधिक है उसे नहीं पढ़ाने दिया जाएगा और जिसे ज्ञान कम है वह पढ़ाएगा। इसका असर स्टुडेंट्स के भविष्य पर पड़ता है।
क्या आपने कभी इस बात पर ध्यान दिया है कि आॅटो गैरेज पर काम करने वाले लोग आपकी खराब गाड़ी को कितनी जल्दी सुधार देते हैं। उन्हें गाड़ियों के बारे में ज्ञान है हालांकि उन्होंने कभी आॅटोमोबाइल इंजीनियरिंग की पढ़ाई नहीं की है बल्कि उन्होंने तो सामान्य पढ़ाई भी नहीं की है लेकिन अनुभव और ज्ञान के बल पर वे गाड़ियों में आई बड़ी से बड़ी खराबियों को भी दूर कर देते हैं। इसलिए जरूरी है कि डिग्रियों के साथ ही ज्ञान पर भी ध्यान दिया जाए। ज्ञानवान लोग यदि स्टुडेंट्स को पढ़ाएंगे तब बात ही कुछ और होगी। ऐसे स्टुडेंट्स जब डिग्री लेकर नौकरी करने जाएंगे तो अपने ज्ञान के बल पर नए मुकाम हासिल करेंगे। कॉलेजों में प्रोफेसर के लिए पीएचडी अनिवार्य, स्कूलों में टीचर के लिए बीएड अनिवार्य... बस डिग्री देखी और दे दी नौकरी। ज्ञान पर तो ध्यान हंी नहीं दिया। कोई चार्टर्ड अकाउंटेंट या इकॉनामिस्ट फाइनेंस संबंधी सभी मामलों को क्यों नहीं पढ़ा सकता? ऐसा ही हर विषय के साथ होता है। इसलिए योग्यता के साथ ही ज्ञान पर विशेष ध्यान दिया जाना जरूरी है।
इसी संदर्भ में दूसरा बड़ा मुद्दा यह है कि टीचर्स को समय के साथ अपडेट करने की कोई प्रक्रिया ही तय नहीं है। तकनीक में बदलाव के साथ मार्केट में भी तेजी से बदलाव होते हैं लेकिन टीचर्स पुरानी पद्धति से ही पढ़ाते रहते हैं उन्हें मार्केट के बदलाव से कोई मतलब नहीं होता। इसका नुकसान अंतत: स्टूडेंट्स को ही उठाना पड़ता है। डिग्री लेने के बाद जब वह मार्केट में नौकरी ढूंढने या व्यवसाय करने जाता है तो वहां उसे नया संसार दिखाई देता है जिससे वह पूरी तरह अनभिज्ञ रहता है। कई साल उसे इस नए संसार का ज्ञान हासिल करने में खर्च करने पड़ते हैं। इसलिए जरूरी है कि शिक्षकों को हर वर्ष नए बदवालों के बारे में प्रशिक्षित किया जाए और वे उसी अनुरूप स्टुडेंट्स को पढ़ाएं।