डॉॅ. प्रमोद कुमार जैन
चेअरमेन, पायोनियर ग्रुप
तथा
चीफ एडिटर
राष्ट्रीय पायोनियर प्राइड
गतांक से आगे...
हमारी शिक्षा पद्धति तो कुछ है ही नहीं... हमने तो लॉर्ड मैकाले की शिक्षा पद्धति को अपना रखा है। यह वह शिक्षा पद्धति है जिसका उद्देश्य था कि पढ़े-लिखे क्लर्क पैदा किए जाएं ताकि उन पर शासन किया जा सके। शिक्षा जिसे अंग्रेजी में एजुकेशन कहते हैं जिसका मूल अर्थ है टू ब्रिंग आऊट याने व्यक्ति के अंदर जो है उसे बाहर निकालना जबकि वर्तमान शिक्षा पद्धति इसके ठीक विपरीत है। इस शिक्षा पद्धति में हम बच्चों के दिमाग में ज्ञान व अन्य बातें डालते हैं न कि उनके दिमाग में मौजूद ज्ञान और प्रतिभा को अंदर से बाहर निकालते हैं। नतीजा बुद्धि का विकास नहीं हो पाता है। सबसे सर्वोपरि है विवेक बन ही नहीं पाता, विवेक का विकास ही नहीं हो पाता है। बिना विवेक के बुद्धि कभी भी सही दिशा में जा ही नहीं पाती।
आज की शिक्षा पद्धति में दूसरी सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि शिक्षा मातृभाषा में न देकर एक विदेशी भाषा में दी जा रही है। नतीजा हमारे स्वयं के भाव या भावनाएं अथवा सोच पढ़ाई में कहीं भी परिलक्षित नहीं होते। हमारी स्वाभाविक सोच पूर्णत: खत्म हो जाती है। हमें एक स्पून फीडिंग की तरह पढ़ाई कराई जाती है जिसका एकमात्र लक्ष्य है कि तीन घंटे की परीक्षा पास करना। तीन घंटे में जो भी कुछ आप उगल आएं उसी पर आपके बुद्धि या विवेक का परिमापन किया जाता है कि आप कितने पढ़े लिखे हैं, जो ठीक नहीं है।
तीसरी बात, जैसे भाषा बदली तो हमारा वृहद इतिहास, हमारा ज्ञान, हमारे ऋषि-मुनियों द्वारा दिया गया ज्ञान जिससे लगभग हर क्षेत्र में हम विश्व में अग्रज थे, उसका उपयोग नहीं हो पा रहा है। आज प्राकृत, संस्कृत, देवनागरी इत्यादि लिपि एवं भाषा में जो हमारा ज्ञान है उसे समझने वाले, जीवन में उतारने वाले बिरले ही हैं। नतीजा, हम वह पढ़ रहे हैं जिसका हमारे से कोई संबंध नहीं है। इसीलिए जब एक कागज की डिग्री लेकर नवयुवक बाहर निकलता है तो वह अपने आप को फ्रेशर बोलता है और कहता है कि मुझे कुछ नहीं आता, आप मुझे सिखाओ। जीवन के 22 साल डिग्री हासिल करने में लगाने के बाद नवयुवक यह बोले कि मैं फ्रेशर हूं तो फिर यह अंदाज लगाया जा सकता है कि शिक्षा से पाया क्या? उसके सामने पूर्ण रूप से जीवनयापन करने का चैलेंज रहता है। (क्रमश:)
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