शिक्षा की बात-सबके साथ (5)
डॉॅ. प्रमोद कुमार जैन
चेअरमेन, पायोनियर ग्रुप
तथा
चीफ एडिटर
राष्ट्रीय पायोनियर प्राइड
गतांक से आगे...
10- यह एक और दुर्भाग्य है कि जो लोग कभी-कभी शिक्षा पद्धति में परिवर्तन करने की कोशिश करते हैं, यह वे लोग होते हैं जिन्होंने अपनी शिक्षा तीस-चालीस साल पहले पूर्ण की थी लेकिन सीनियर होने के नाते वे उन आयोग और उन कमीशन में बैठे हैं जो शिक्षा प्रणाली को सुधारने का कार्य करते हैं। उनकी सोच और उनका अनुभव वर्तमान में तेजी से परिवर्तित होते हुए समय के अनुकूल न होने के कारण उनके द्वारा किए गए परिवर्तन या तो अव्यावहारिक होते हैं या अवांछित होते हैं।
11- योग्य लोगों के होने के बावजूद हमारे देश में बेसिक रिसर्च और इनोवेशन नहीं हो पाते हैं। ओरिजनल थॉट प्रोसेस का पूर्णत: अभाव होता है क्योंकि ऐसा कोई प्रोसेस ही डेवलप नहीं हो रहा जहां कोई व्यक्ति निश्ंिचत होकर कोई रिसर्च या कोई इनोवेशन करे। ऐसा नहीं है कि भारतीयों में ऐसा करने की क्षमता नहीं है। इतिहास साक्षी है कि हजारों साल पहले भारतीय लोगों ने वह रिसर्च की थी जहां साइंस की आज तक पहुंच नहीं है। आज भी हमारा ज्ञान इतना ज्यादा है कि वर्तमान साइंस उसका 30 प्रतिशत भी समझ नहीं पाया है। जरूरत है तो सिर्फ इस चीज की कि जो कुछ भी हमारा ज्ञान है, जिस भी भाषा में है उसे उसी भाषा में, उसी भावना के अनुरूप अगर पढ़ाया जाए तो नतीजे बहुत ही शीघ्र अच्छे आएंगे लेकिन आज भी हमारे दिमाग में अंग्रेजों के प्रति मानसिक गुलामी है और वह हावी है। जो अंग्रेजी जानता है वह पढ़ा-लिखा, स्मार्ट, इंटेलीजेंट... बाकी अनपढ़, गंवार कहलाते हैं। जब तक हम अपनी भाषा और हमारे पूर्वजों द्वारा संचित ज्ञान को शिक्षा प्रणाली में नहीं लाएंगे तो चाहे और सौ साल निकल जाएं हम वहीं के वहीं रहेंगे जहां आज हैं।
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