शिक्षा की बात-सबके साथ (8)
डॉॅ. प्रमोद कुमार जैन
चेअरमेन, पायोनियर ग्रुप
तथा
चीफ एडिटर
राष्ट्रीय पायोनियर प्राइड
गतांक से आगे...
कुछ समय पूर्व मैं यूरोप टूर पर था वहां मेरी मुलाकात कनाडा की एक प्रोफेसर से हुई। जिज्ञासावश मैंने उनसे कनाडा में किस तरीके से एजुकेशन दी जाती है इस संबंध में बातचीत की। बातचीत में मालूम पड़ा कि वहां पर प्रोफेसर्स को पूरी जिम्मेदारी दी जाती है, वे ही सिलेबस बनाते हैं, वे ही पढ़ाते हैं, वे ही एग्जामिनेशन पेपर बनाते हैं और इवेल्यूएशन भी करते हैं... कहने का मतलब है पूरी-पूरी शिक्षा टीचर सेंट्रिक है और शिक्षा की क्वालिटी की पूरी जिम्मेदारी टीचर पर है। टीचर पूरी ईमानदारी से अपने सब्जेक्ट को पढ़ाता है। बच्चों में सब्जेक्ट नॉलेज ट्रांसफर करता है और उसका इवेल्यूएशन करता है... अर्थात टीचर पर पूर्ण भरोसा। जबकि भारत में यह सिस्टम है कि यहां पर टीचर पढ़ा तो सकता है लेकिन उसे न तो सिलेबस तैयार करने का अधिकार है और न ही करिक्युलम। जिन बच्चों को उसने पढ़ाया है उनका इवेल्यूएशन करने का अधिकार भी नहीं है। नतीजा...न तो समय पर सिलेबस अपडेट होता है और न ही टीचर के पास कोई अधिकार ही हैं। उसे तो सिर्फ एक सिस्टम में चलना है और परिणाम चाहे जो हो वह सिस्टम से टस से मस नहीं हो सकता जबकि यूरोप में टीचर अपनी मर्जी से सिलेबस अपडेट करता है और अपनी मर्जी से परीक्षा लेता है।
कनाडा की प्रोफेसर ने एक बात और बताई कि टीचर का फीडबैक बच्चों से लिया जाता है। उस फीडबैक पर कंट्रोलिंग अथॉरिटी बहुत ही गंभीरता से कार्य करती है। कुछ भी गलत होने पर न सिर्फ संबंधित टीचर की नौकरी जाती है बल्कि अन्य संस्थान भी उन्हें नौकरी नहीं देते हैं, अगर उन्होंने कुछ भी गलत जो कि एजुकेशन प्रोफेशन के अंदर गलत माना जाता है वह किया हो। अगर रिजल्ट गलत आता है तो भी अध्यापक जिम्मेदार है उसकी पूरी जवाबदारी भी अध्यापक पर ही है। ठीक इसके विपरीत हमारे यहां टीचर की क्लास रूम में पढ़ाने के अलावा कोई जवाबदेही नहीं है। न तो उसका कोई सहयोग सिलेबस बनाने में लिया जाता है और न ही उसे परीक्षा लेने का अधिकार है। एक पूरा सिस्टम ऐसा बना हुआ है जिसके अंतर्गत पेपर कोई बनाता है, चेक कोई और करता है, पढ़ाता कोई और है... कोई जिम्मेदार नहीं। इसी वजह से पढ़ाई की क्वालिटी दिन-प्रतिदिन खराब होती जाती है। माना, सिलेबस टीचर बनाते हैं लेकिन कौन हैं वे लोग... जो या तो सिस्टम से बाहर हैं या यह कहें कि क्लास रूम टीचिंग में कम संलग्न हैं लेकिन इस व्यवस्था के कारण टीचर की अकाउंटेबिलिटी नहीं होती। नतीजा क्वालिटी एजुकेशन का पूर्णत: अभाव है। (क्रमश:)
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