शिक्षा की बात-सबके साथ (7)
डॉॅ. प्रमोद कुमार जैन
चेअरमेन, पायोनियर ग्रुप
तथा
चीफ एडिटर
राष्ट्रीय पायोनियर प्राइड
गतांक से आगे...
अब मैं बात करूंगा भारत की प्रीमियर इंस्टीट्यूट्स की जैसे आईआईएम और आईआईटी। यह विश्व स्तर की संस्थाएं हैं और भारत सरकार इन संस्थाओं में काफी पैसा लगाती है। देश के सबसे योग्य शिक्षक एवं विश्वस्तरीय शिक्षा की सुविधाएं यहां उपलब्ध हैं। इन संस्थानों में प्रवेश लेने के लिए कड़ी मेहनत के साथ एंट्रेंस एग्जामिनेशन को पास करना पड़ता है तब जाकर एडमिशन मिलता है। अब गौर करें... इनसे पास आउट बच्चे भारत देश को क्या कंट्रीब्यूट कर रहे हैं, इस देश की समृद्धि और इस देश के विकास में इनका क्या योगदान है? इन संस्थानों से पास होकर निकले अधिकतर लोग विदेशों में अपने ज्ञान, अपने अनुभव, अपने विवेक और अपनी बुद्धि का उपयोग कर उन देशों को अग्रसर बनाने में, उन्नत बनाने में, विकसित बनाने में पूर्णत: समर्पित हैं। हमारे देश को क्या मिला, यह एक सोचनीय विषय है। जिम्मेदार लोगों को इस विषय में उचित कदम उठाकर इन संस्थाओं से पास विद्यार्थियों को देश में सम्मानजनक रोजगार, पोजिशन देने की व्यवस्था करनी चाहिए ताकि यह लोग इस देश को आगे बढ़ाने में, विकसित बनाने में सहयोग करें।
समस्या यह है कि इस तरफ न तो कोई ध्यान दे रहा है और न ही कोई व्यवस्था ऐसी बनाई गई कि इस ब्रेन ड्रेन को रोका जा सके। आज भारत की साइंस एंड टेक्नोलॉजी में, मेडिकल साइंस में या अन्य विधाओं में जो भी उपलब्धियां हैं उनमें से बहुत ही गिनती की उपलब्धि ऐसी हैं जिनमें इन लोगों का कोई कंट्रीब्यूशन है। जिन लोगों ने कंट्रीब्यूट किया है उनके पास आईआईटी,आईआईएम जैसी संस्थाओं से कोई डिग्री नहीं है। उनके पास सामान्य संस्थाओं की डिग्री है और उन्होंने अपने बलबूते पर, अपनी मेहनत से भारत को बहुत सारे क्षेत्रों में सिरमौर बनाया है। यहां पर मैं एक उदाहरण देना चाहूंगा ब्रह्मोस मिसाइल का जो विश्व की उच्च स्तर की मिसाइल है, उस प्रोजेक्ट में शामिु सभी वैज्ञानिकों ने भारत की सामान्य शिक्षण संस्थानों से नॉर्मल साइंस की ग्रेजुएट अथवा पोस्ट ग्रेजुएट डिग्री हासिल करके अपनी मेहनत के बलबूते पर यह सफलता हासिल की है। (क्रमश:)
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