मन रिटायर क्यों हो जाता है

 रिटायरमेंट किसी भी व्यक्ति के जीवन में एक प्रमुख पड़ाव होता है यह ऐसा पड़ाव है जहां से पीछे मुडकर देखना होता है यहां तक कब, कैसे, किस तरह से पहुंचे हैं। जिंदगी की आपाधापी में शरीर रिटायरमेंट तक आते-आते थकने लगता है और इस शरीर की थकावट का असर मन पर भी पड़ने लगता है। यह वर्षों से चली आ रही मानसिकता का परिणाम है कि हम साठ के हुए कि यह मानने लगते हैं कि अब समाज, परिवार से अलगाव का समय आ गया है। क्या यह सही मानसिकता है? जिस परिवार, समाज से हम अटूट बंधन में बंधे थे उससे अलग होने का फैसला हम कर लेते हैं या हम यह मान लेते हैं कि ऐसा करना है। जबकि ऐसा करने के लिए कोई कहता नहीं है।

रिटायर होने वाला व्यक्ति अपने मस्तिष्क में एक ग्रंथी पाल लेता है जिसमें से रिटायरमेंट नामक हार्मोन लगातार स्त्रावित होता रहता है। इसके कारण हम मन को लगाम लगा देते हैं और अपनी आंखों पर रिटायरमेंट का चश्मा लगाकर दुनिया देखने लगते हैं जिसमें सबकुछ थका हुआ...एवं अलगाव वाले दृश्य सामने आते हैं। हम स्वयं ही मान लेते हैं कि अब परिवार और समाज को हमारी जरुरत नहीं जबकि आप अपनी सामान्य दिनचर्या जीते रहते हैं खाते-पीते हैं स्वयं की मर्जी अनुसार जो इच्छा है करते रहते हैं।
रिटायर व्यक्ति मन से भी रिटायर होने की बात कहने लगता है और परिवार वालों से लेकर समाज में जो भी बातें होती रहती हैं उसे सीधे रूप से वह रिटायरमेंट से ही जोड़ने लगता है। उसे ऐसा लगता है कि वह रिटायर हो गया है तो अब दुनिया का उसके प्रति रवैया भी बदल जाएगा। उसे सभी थका हुआ समझेंगे...वह किसी काम का नहीं है इसलिए वह अपने आसपास एक आवरण ओढ़ने लगता है। परिवार से दूरी बनाने लगता है सामाजिक गतिविधियों में भाग लेना कम कर देता है। एक प्रकार से अपने आप को समाज व परिवार से अलग करने की प्रक्रिया वह आरंभ कर देता है।
इस प्रक्रिया में वह यह भूल जाता है कि उसकी उम्र अभी 60 वर्ष ही है और इस उम्र में विदेशों में लोग न केवल एक्टिव रहते हैं बल्कि समाज को अपने अनुभव का लाभ देने के लिए लालायित रहते हैं। अनुभव की बात आते ही अगर मन में यह बात आने लगे कि मुझे कोई पूछेगा तो ही मैं अपने अनुभव शेयर करुंगा... ऐसी मानसिकता क्यों? क्या रिटायरमेंट व्यक्ति के अहं में ओर बढ़ावा करता है? क्या रिटायरमेंट समाज से कटने के लिए होता है या दौड़भाग भरी जिंदगी से कटने के लिए होता है। रिटायर व्यक्ति की मानसिकता यह रहती है कि अब मैंै पहले जैसी कमाई नहीं कर पाउंगा इस कारण लोग और खासतौर पर घरवाले मुझे पूछेंगे कि नहीं? इसके अलावा रिटायर व्यक्ति यह भाव भी पाल लेता है कि अब मैं सभी जिम्मेदारियों से मुक्त हो गया हूं। अब मेरी मर्जी के अनुसार जिंदगी के पल सुकून से गुजारुंगा। पर क्या वाकई ऐसा होता है और क्या अब तक सुकून नहीं था?  प्रश्न कई हैं पर उत्तर भी रिटायर व्यक्ति के पास ही है। उन्हें रिटायरमेंट की ग्रंथी पालना बंद करना होगा और सामान्य रुप से विचार करना होगा बिना रिटायरमेंट का टैग लगाए। रिटायर होना मतलब जिंदगी समाप्त होना या आपको एक सींग उग आना नहीं है यह सामान्य प्रक्रिया है और सभी की जिंदगी में आती है। जहां तक अनुभव शेयर करने की बात है हो सकता है कि रिटायर व्यक्ति की दिली इच्छा होती हो कि कुछ दिनों तक सामान्य जिंदगी गुजर बसर करे...और यह होता भी है इसमें कोई बुराई नहीं है। पर कुछ दिनों तक ही रखें, इसे दिनचर्या का हिस्सा न बनाएं वरना आलस्य अपना चोला ओढ़ाने के लिए आतुर रहता है। जब भी समय मिले जैसा समय मिले लोगों के बीच अपने अनुभव बांटें...मन में यह भाव नहीं लाएं कि हमें कौन सुनेगा...या दुनिया बदल गई है...यह अकाट्य सत्य है कि अनुभव का कोई तोड़ नहीं।