सुख के रिश्तें

सुख क्या है? क्या कभी विचार किया की आखिर सुख क्या ज्यादा पैसा कमाने में ? किसी से प्रतिस्पर्धा में जीतने में ? या किसी को दु:ख देने में है? कई व्यक्ति होते है जिन्हें दुसरों को दु:ख देने में ही सुख मिलता है। ऐसे लोगों की संख्या कम है पर है जरुर। सुख हम घर पर ढूंढते है अपने रिश्तों में अपने माता पिता, बच्चों , पत्नी की खुशियों में याने अपने घर की खुशियों में। घर की खुशियां हमारे लिए सर्वोपरी है। इसी के लिए तो व्यक्ति दिन रात मेहनत करता है कि घर में खुशियां भरी रहे और सुख ही सुख पसरा रहे। रिश्तों में जरा सा असंतुलन हमारी सुख की कल्पनाओं को झकझोर देता है। हम स्वयं सोचने लगते है कि यह असंतुलन क्यों हुआ और कहा कमी रह गई। घर पर आपसी रिश्तों में जहाँ प्रेमभाव रहता है वही समय के साथ साथ कभी कड़वाहट भी आ जाती हैं। कभी मनमुटाव भी होता है पर व्यक्ति परिवार टूटने के डर से इस मनमुटाव को स्वयं के व्यक्तित्व की सतह पर नहीं आने देता। यह मनमुटाव भीतर ही रहने देता है। इस कारण भीतरी मन में कहीं न कहीं यह मनमुटाव खुदबुदाता रहता है। वह बार बार प्रश्न करता है और आपसे पूछता है कि ऐसा क्यों कर रहे हो? ऐसे समय एकबारगी व्यक्ति यह भी सोचने लगता है कि वह भावनाओं की गर्माहट भरे रिश्तें निभा रहा हैं या मात्र रिश्तें को येन केन तरीके से ढो रहा है। इसका असर व्यक्ति के सार्वजनिक जीवन पर भी पड़ता है पर वह रिश्तों का एडजस्टमेंट करता रहता है। उसे पता रहता है कि अगर वह एडजस्टमेंट नहीं कर पाया तब क्या होगा? बिखराव,दु:ख, अलगाव सभी कुछ घेर लेंगे और मनुष्य वैसे प्राकृतिक रुप से सकारात्मक ही रहता है इस कारण वे इस एडजस्टमेंट को सुख का रिश्ता मानकर जिंदगी में आगे बढ़ता रहता हैं। फिर असल सुख का क्या होता है ? क्या वह जो सुख भोगता है वह आभासी होता है? क्या वह जिंदगी को पटरी पर चलते रहने के लिए किराए का सुख भोगता रहता है? दरअसल व्यक्ति कभी भी नहीं चाहता कि रिश्तों में खासतौर पर पारिवारिक रिश्तों में खटास आए। वह कभी भी नहीं चाहता कि उसे किराए का सुख भोगना पड़े परंतु परिस्थितिवश उसे ऐसा करना पड़ता है वह परिस्थितियों के आगे झुक जाता है भले ही स्वयं के व्यक्तित्व की बली उसे देना पड़े। वह समझौता करता है अपने आप को मनाता है और न जाने क्या क्या करता है। पर एक बात है कि सुख के रिश्तों की बुनियाद खुली बातचीत में है और मनमुटाव होने पर तत्काल उसे बातचीत का सहारा लेकर समस्या का तत्काल हल खोजना चाहिए। कई बार समय के साथ आपसी मनमुटाव के घाव इतने गहरें हो जाते है कि वह वापस गर्माहट भरे रिश्तों की ओर लौट ही नहीं पाता। वह इतनी दूर जा चुका रहता है कि वापसी करना उसके लिए मुश्किल भरा हो जाता है। इस कारण सुख के रिश्तों को बनाए रखने के लिए लगातार बातचीत करने रहना जरुरी है स्वयं से भी और अपने प्रियजनों से भी , तभी सुख के रिश्तें ता उम्र ताजगी लिए हुए रहें और आपको स्वयं से भाग कर इतने दूर न जाना पड़े की लौटने का कोई रास्ता ही न बचे।



- अनुराग तागड़े