बुजुर्गो को ये समझाना भी हमारी जिम्मेदारी है

आधुनिक युग में स्मार्ट मोबाईल चलाकर चैटिंग करना या फेसबुक पर फ्रेंड बनाना हम लोगो के लिए बड़ी ही सामान्य सी बात है और यह सबकुछ हमारी आदतों में शुमार हो चुका है। परंतु बुजुर्गो के लिए स्मार्ट फोन चलाना या कम्प्युटर पर सोशल मीडिया अकाउंट चलाना याने बड़ी मुश्किलों का काम होता है और जब वे इसे चलाना सीख जाते है तब उत्साह से भर जाते है। यहां तक तो ठीक है परंतु जब वे अतिउत्साह में आ जाते है तब कुछ ऐसा कर बैठते है जिसके बाद वे स्वयं परेशान हो जाते है और इससे छुटकारा कैसे पाया जाए इस जद्दोजहद में लग जाते है। शहर में समाजसेवा के नाम पर बुजुर्गो से अॉनलाईन ठगी के कई किस्से पहले भी हो चुके है और हाल फिलहाल में पुन: ऐसा किस्सा सामने आया है जिसमें समाजसेवा के नाम पर विदेश से पार्सल भेजा जाना और फिर एयरपोर्ट से पार्सल में विदेशी करंसी का होना बताया जाता है। अगर करंसी नहीं छुडाई गई तो गिरफ्तारी होगी यह कहकर डराया भी जाता है। बुजुर्ग इस उम्र में गलती कर बैठते है और इसके पकड़े जाने से डर जाते है और इस डर का फायदा यह संगठित गिरोह उठाता है। बुजुर्गो से पैसे वसूले जाते है मामले को रफा दफा करने के लिए और लाखो रुपए वसूल किए जाते है। दरअसल  बुजुर्गो को हम फेसबुक चलाने की ट्रेनिंग तो दे देते है परंतु किसी अनजान से फेसबुक फ्रेंडशिप नहीं करने की सीख नहीं दे पाते। बुजुर्गो को यह दोस्त बनाने का तरीका बेहद अच्छा लगता है। इस कारण वे लगातार दोस्त बनाते रहते है और इन्ही दोस्तो में से कोई उनकी संपूर्ण प्रोफाईल देखकर लूट को अंजाम देता है। यह हमारी जिम्मेदारी है कि बुजुर्गो को सोशल मीडिया की नकारात्मक बातों से भी अवगत करवाएं और साथ में यह भी बताएं कि एक सीमा तक किस प्रकार से सोशल मीडिया का सही तरह से प्रयोग करना चाहिए वरना इस प्रकार के संगठित लूट की घटनाएं होती रहेंगी।