मेरी सखी मेरी सहेली

अदिति अरोरा

मेरी सखी मेरी सहेली
मरे साथ रही सदा
मैं जब भी हुई अकेली......
साथ कभी ना छोड़ा
दिल कभी न तोड़ा
मैं सबकी सुनती
तू मेरी सुनती
परियों की कहानियां
मैं तेरे तले बुनती
यूं ही सुलझाती रही
मेरी जिंदगी की पहेली
मेरी सखी मेरी सहेली.....
बचपन में खेली
बहुत तुम मेरे साथ
अब भी है हाथों में हाथ
अनूठा रिश्ता है हमारा
मैं कुछ गलत करती तो.... कहानी सुनकर
तुम समझतीं.... तुम सिखाती
घर में रूठ जाती तो चुटकुले सुनाकर
तुम हँसाती... तुम बहलातीं.....
डांट मुझे पड़ती और भीग तुम जातीं....
मार मुझे पड़ती और कांप तुम जातीं...
तुम्हें याद है ना...
वो पुरानी हवेली
मेरी सखी मेरी सहेली
मेरे साथ रही सदा
मैं जब हुई अकेली..
हम साथ-साथ बड़े हुए
जाने कितने ही मेरे राज तेरे अन्दर हैं दबे हुए
कभी सुर्ख गुलाब को तुमने छुपाया
दोस्ती का ये रिश्ता तुमने खूबसूरती से निभाया...
मैं सयाही में भिगोकर कहती रहती
तुम खामोशी से सब सुनती रहतीं
मेरे हर लम्हे को जिया है तुमने
तुम्हारे अलावा कौन जनता है मुझे
यूं ही रहेगा हमारा रिश्ता
तुम हो सबसे प्यारी पुस्तिका
जो मैं किसी से ना कह सकी
वो सब तुम बिना कहे सुनती रहीं
क्योंकि तुम हो मेरी दोस्त अलबेली
मेरी सखी मेरी सहेली
मेरे साथ रही सदा
मैं जब हुई अकेली