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सहनशक्ति, धीरज और संतोष की शिक्षा क्यों नहीं दी जाती...

डॉॅ. प्रमोद कुमार जैन
चेअरमेन, पायोनियर ग्रुप
शिक्षा का मूल उद्देश्य मनुष्य को इंसान बनाना है। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज में किस तरीके से नैतिक आचरण किया जाए, परिवार का भरण-पोषण किया जाए तथा जीवन के सभी उतार-चढ़ाव सहने में सक्षम बनाने के लिए शिक्षा ही एकमात्र साधन है। शिक्षा के माध्यम से मनुष्य अपने जीवन को सुचारू रूप से एक अच्छे व्यक्तित्व के साथ जी सकता है। आजकल शिक्षा का उद्देश्य सिर्फ और सिर्फ अच्छी नौकरी पाना, पैसे कमाना ही रह गया है चाहे साधन नैतिक हो या अनैतिक। आज शिक्षा इस तरीके से दी जा रही है जिससे व्यक्तित्व विकास में धीरज, विपरीत परिस्थितियों को सहने की शक्ति, संतोष, जो कि जीवन चक्र में अति आवश्यक है इसका पूर्णत: अभाव दिखाई दे रहा है। नतीजा, आए दिन जिंदगी से उम्मीद छोड़कर अच्छे-अच्छे पढ़े-लिखे लोग अपनी जीवन लीला को समाप्त कर रहे हैं क्योंकि शिक्षण पद्धति में कहीं भी ऐसी व्यवस्था नहीं है कि जिससे व्यक्ति का आत्मविश्वास बढ़े, विपरीत परिस्थितियों को सहने की शक्ति बढ़े, संतोष धारण करने की क्षमता उत्पन्न हो। जिंदगी पूरी तरह उतार-चढ़ाव से भरी हुई है और कभी भी एक जैसे दिन किसी के नहीं होते हैं। जिंदगी में खुश रहने या खुशी-खुशी जीने के लिए जो सबसे अधिक आवश्यक है वह है संतोष, आवश्यकताओं का सीमाकरण और आत्मविश्वास। आज की शिक्षा पद्धति सिर्फ और सिर्फ डिग्री देने तक सिीमित है। सभी को एक ही लाठी से हांका जाता है जबकि होना यह चाहिए कि हर व्यक्ति की रूचि के अनुसार उसे शिक्षा देनी चाहिए। (क्रमश:)