अकेला हूँ...अकेला ही रहने दो

अकेलापन भी खुब अपनापन लिए रहता है.. इसमें इंसान स्वयं से बाते करता है और अपने व्यक्तित्व के विभिन्न् रंगो से रुबरु होता है। बात खुब ज्यादा आध्यात्मिक नहीं है बस सोचने भर की बात है। अकेलेपन काटने को दौडता है यह बात सच है परंतु कुछ समय बाद । व्यक्ति जब अकेला होता है तब पहले उसे खुब खुशी होती है। अकेला रहुँगा मन की करुंगा और वह करता भी है। बाकी बाते छोड़े तब अकेले व्यक्ति के स्वयं से संवाद का जो समय होता है वह काफी महत्वपूर्ण होता है। उस समय मन तरह तरह की बाते करता है और न जाने कितने रंग बदलता है। इंसान को स्वयं के भीतर के खलनायक से लेकर नायक से परिचय हो जाता है। ऐसे में अधिकांश व्यक्ति स्वयं के आसपास ही विचारों को बुनता है जिसमें स्वयं की सफलता, असफलता, इच्छाओं और आकांक्षाओं से लेकर प्रेम,दुश्मनी,प्रतिस्पर्धा आदि शामिल होते है। स्वयं से बातचीत करने का सिलसिला इस बात पर निर्भर करता है कि इंसान चाहता क्या है? अगर व अतिमहत्वकांक्षी होगा तो निश्चित रुप से पैसा कही न कही उसके विचारो में आएगा ही परंतु इंसान सही मायने में आत्मविश्लेषण करना चाहे या स्वयं की कोई समस्या से निजात पाना चाहता है तो अकेलापन उसके लिए बिल्कुल सही राह दिखा सकता है। दरअसल जब व्यक्ति बिना किसी आडंबर और दिखावे के स्वयं को स्वयं की नजर से देखता है तब वह उस नंगेपन से दो चार होता है जिसे इंसान ने दुनिया के सामने छुपा कर रखा होता है । यह नंगापन व्यक्तित्व का होता है। दुनिया के सामने हम अपने व्यक्तित्व को भी कपड़े पहना देते है। जैसा माहौल वैसे कपड़े पर एकांत में हम अपने व्यक्तित्व को अपनी नजरो में तौल कर देख सकते है और उससे प्रश्न कर सकते है कि अब दिखावा नहीं करना है बता क्या चाहता है? क्यों लगातार चोले बदलता रहता है और दुनिया के सामने दिखावा करता रहता है। असलियत कुछ ओर है और तु कुछ ओर ही बनता जा रहा है। यह समय ऐसा होता है जब तर्क वितर्क होते है अच्छे और बुरे कामो का लेखा जोखा भी पुछा जाता है। आदर्शवाद ,सच इमानदारी को झूठ,कपटीपना और स्वार्थ अपनी ओर खींचने की कोशिश करते है। अधिकांश इंसान इस स्थिति को महसूस ही नहीं कर पाते क्योंकि वे काफी कम अकेले रहते है और अगर रहते भी है तब वे इतनी गहराई तक नहीं जा पाते और स्वयं को हालातो के हवाले कर देते है। दृढ़निश्चियी व्यक्ति हर समय यही कहेगा अकेला हूँ अकेला रहने दू क्योंकि अकेलेपन का मर्म वही जान सकता है जिसने इसका भरपूर फायदा उठाया हो आत्मविश्लेषण करने में और स्वयं के आत्मिक विकास करने में।




- अनुराग तागड़े