भारी पड़ेगी तालाबों की उपेक्षा

इंदौर। शहर का विस्तार तेजी से हो रहा है लेकिन उतनी ही तेजी से जरूरी संसाधनों की उपेक्षा भी की जा रही है। इसमें जल, जंगल, जमीन सभी कुछ शामिल हैं। आजादी के बाद किसी भी सरकार ने शहर में तालाब, कुए और बावड़ियां नहीं बनाईं लेकिन जो कुछ होलकर शासन ने सौंपा था उसे भी हम संभाल नहीं पाए। तालाबों की जमीन पर लगातार अतिक्रमण हो रहा है लेकिन सख्त कार्रवाई करने को कोई तैयार नहीं है। ऐसे हर मामले को टाला जाता है और अंतत: आम नागरिक या कोई संस्था कोर्ट की शरण लेती है। कोर्ट का आदेश आने के बाद ही अधिकारी कार्रवाई करते हैं। तालाबों की उपेक्षा भविष्य में बहुत भारी पड़ेगी। नर्मदा का पानी शहर में आने के बाद तालाबों को लगभग भुला दिया गया है। 
बिलावली, पिपल्यापाला, यशवंत सागर, पिपल्याहाना, सिरपुर...कोई भी तालाब अतिक्रमण से नहीं बचा। सब देखते रहे और अब भी देख ही रहे हैं चाहे जनप्रतिनिधि हों या अधिकारी। बिलावली तालाब के कैचमेंट एरिया से लगाकर बाहर खंडवा रोड स्थित पाल तक पर अतिक्रमण हैं। तालाब के आसपास की जमीन पर वर्षों पहले प्लॉट काट कर बेचने का मामला भी लोग भूले नहीं हैं। एक आश्रम द्वारा भी तालाब की जमीन पर कब्जा किया गया। बिलावली तालाब जीवित है और इससे भंवरकुआं क्षेत्र तक पेयजल सप्लाय भी किया जाता है। इसके बावजूद तालाब की उपेक्षा समझ से परे है। 
पिपल्यापाला पिकनिक स्थल बन चुका है। इसके आसपास की जमीन पर कई अवैध बस्तियां बस गईं। अब किसी की हिम्मत नहीं है कि उन्हें हटा कर तालाब को मुक्त करा सके। जब भी भारी बारिश होती है तो इन बस्तियों में पानी भरा जाता है और पूरा प्रशासन लोगों को सुरक्षित बाहर निकालने में जुट जाता है। जब बस्तियां बस रही थीं तब तत्कालीन अधिकारी और क्षेत्र के नेता खामोश रहे, जिसका खामियाजा अब शहर भुगत रहा है। इस क्षेत्र की हरियाली गायब हो गई और तालाब की जमीन भी। 
पिपल्याहाना तालाब का बड़ा हिस्सा अतिक्रमण की चपेट में आने के बाद पिछले वर्ष शासन ने वहां की जमीन पर शासकीय भवन के निर्माण की अनुमति दे दी थी। इंदौर के लोगों ने जबर्दस्त विरोध प्रदर्शन किया तब जाकर अनुमति निरस्त की गई। इस क्षेत्र में भारी बारिश के दौरान आसपास की बस्तियों में पानी भरता है। 
सिरपुर तालाब के हाल बेहाल हैं। वह अब भी जिला प्रशासन और नगर निगम के वादों के पूरे होने का इंतजार कर रहा है। तत्कालीन कलेक्टर पी. नरहरि ने तालाब की जमीन का सीमांकन कर तुरंत सभी अतिक्रमण हटाने के लिए कहा था। उनके तबादले के बाद कोई कार्रवाई नहीं हुई। तालाब चारों ओर से बस्तियों से घिर गया और अब भी घिरता जा रहा है। इस तालाब का महत्व इसलिए भी अधिक है कि यहां हर साल बड़ी संख्या में प्रवासी पक्षियों का आगमन होता है। यदि यही हालात बने रहे तो आने वाले कुछ वर्षों में ये पक्षी भी कोई नया ठिकाना ढूंढ लेेंगे। 
यशवंत सागर सबसे बड़ा जलस्रोत है और यह भी होलकर शासन की ही देन है। गांधी नगर से बड़ा गणपति तक इससे जलप्रदाय किया जाता है। आईटी कंपनी टीसीएस और इन्फोसिस को भी इसी तालाब से जलप्रदाय किया जाएगा। इसका केचमेंट एरिया बहुत बड़ा है। शहर से दूर होने के कारण इसकी जमीन पर हो रहे अतिक्रमणों पर कभी ध्यान ही नहीं दिया जाता है।