क्या गर्मी का मौसम आने के बाद ही शुरू होगी तैयारी?

इंदौर। गर्मी का मौसम शुरू होने में लगभग दो माह का समय शेष है लेकिन न तो शहर में और न ही ग्रामीण क्षेत्र में कहीं भी जलसंकट से निपटने की तैयारियां नजर आ रही हैं। शहर तो पूरी तरह नर्मदा के पानी और नलकूपों पर निर्भर हो चुका है और अधिकारी भी यही चाहते हैं कि जैसे-तैसे गर्मी का मौसम गुजर जाए, बारिश आने के बाद तो लोग जलसंकट भूल ही जाते हैं। इसके अलावा दूसरा पक्ष यह भी है कि गर्मी के मौसम में जलसंकट से निपटने के लिए बड़ा बजट भी  तो मिलता है। बड़ी संख्या में टैंकर चलाने पड़ते हैं और उन्हें भुगतान भी करना पड़ता है। जलसंकट का मौसम कुछ लोगों के लिए अच्छी खबर लाता है तो उन लोगों के लिए बुरा साबित होता है जिन्हें बर्तन लेकर दूर-दूर तक पानी के लिएभाटकना पड़ता है। अब भी समय है यदि जलसंकट का सामना करने के लिए स्थानीय जलस्रोतों को पुनर्जीवित करने की पहल की जाए तो लोगों को बर्तन लेकर भटकना नहीं पड़ेगा। होलकर शासनकाल में बने कुए-बावड़ियों की सफाई करा कर उनसे आसपास के बड़े क्षेत्र में जलप्रदाय किया जा सकता है लेकिन नर्मदा का पानी आने के बाद अधिकांश कुओं को तो कचरा फेंक-फेंक कर बंद किया जा चुका है। बावड़ियां सूख चुकी हैं। यदि किसी कारणवश दो-चार दिन नर्मदा का पानी इंदौर नहीं पहुंचे तो शहर के क्या हाल होंगे? शहर के पास कोई अन्य विकल्प मौजूद नहीं है जिसका उपयोग कर दो-चार दिन का समय निकाला जा सके। शहर की आबादी लगातार बढ़ती जा रही है, शहर स्मार्ट सिटी भी बनने जा रहा है लेकिन इस सबके लिए जरूरी है पानी। यदि पानी की कमी इसी तरह से जारी रही तो असर शहर के विकास पर भी पड़ना निश्चित है। अधिकारियों को शहर में तीन-चार साल का समय गुजारना है लेकिन जनप्रतिनिधियों को तो इसी शहर में रहना है और जवाब भी उन्हें ही देना पड़ेगा। नर्मदा से भरपूर पानी लेने के बाद भी शहर के अधिकांश हिस्सों को पर्याप्त पानी नहीं मिल पा रहा है और लोगों को मोटर पंप सीधे नल में लगा कर पानी खींचना पड़ रहा है...इसे बेहतर जलप्रदाय व्यवस्था तो नहीं कहा जा सकता। अब भी समय है इस दिशा में गंभीरता से विचार कर आने वाले जलसंकट के बड़े खतरे को टालने की कोशिश अभी से की जाना चाहिए।