क्या दिग्विजयसिंह पर्दे के पीछे से ही भूमिका निभाएंगे?

इंदौर। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजयसिंह और कांग्रेस के युवा नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया में एक समानता है कि ये दोनों ही राजघराने से हैं और अब भी इनमें राज परंपरा और राजे रजवाडों की संस्कृति का पालन किया जाता है। यही कारण है कि प्रदेश में कांग्रेस के त्रिकोण याने दिग्विजय सिंह, कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया में से सिंधिया और दिग्विजय सिंह के आपसी संबंध राजे रजवाड़ों के हैं जिसके कारण दोनों एक दूसरे का सम्मान भी करते है और परंपराओं में विश्वास भी करते हैं। 
दिग्विजयसिंह ने कहा था कि वे अगर विधानसभा चुनावों में हार गए तब 10 वर्ष प्रदेश की राजनीति से दूर ही रहेंगे और उन्होंने इसका पालन किया भी। इस बीच कांग्रेस की स्थिति और राहुल गांधी के पार्टी अध्यक्ष बनने के बाद माहौल बदल गया और गुजरात चुनावों के बाद बदली स्थिति में दिग्विजयसिंह नर्मदा यात्रा कर रहे हैं। नर्मदा यात्रा के पश्चात वे पर्दे के पीछे रहते हुए शतरंज की बिसात बिछाएंगे जिसकी शुरूआत उन्होंने अभी से कर दी है। धार में दो घोर विरोधियों को एक साथ लाने की कवायद दिग्विजयसिंह ने ही की। इसका असर यह हुआ है कि अंतिम पंक्ति के कार्यकर्ता तक यह संदेश गया है कि कांग्रेस सही मायने में बदल रही है। दिग्विजयसिंह अपने पुत्र जयवर्धन को भी प्रदेश की राजनीति में प्रमुखता से आगे करना चाहते हैं। जयवर्धन को जो करीब से जानते हैं वे यह भी जानते हैं कि जयवर्धन में वो सभी गुण मौजूद हैं जो एक परिपक्व राजनीतिज्ञ के लिए जरुरी होते हैं। 
किंगमेकर ही बनेंगे
दिग्विजयसिंह निश्चित रुप से प्रदेश कांग्रेस में अपनी दखल रखेंगे ही और साथ में वे किंगमेकर की भूमिका भी निभा सकते हैं। दिग्विजयसिंह को प्रदेश के एक-एक जिले की संपूर्ण जानकारी है और वे बदलते वोटिंग पैटर्न को भी जान चुके हैं। इस प्रकार आगे आने वाले चुनावों में वे अपने राजनीतिक कौशल से न केवल कांग्रेसियों को एक करने का प्रयास करेंगे बल्कि हो सकता है कि कांग्रेस उनके कहने पर प्रदेश के कई टिकट पहले ही तय कर घोषणा भी कर दे। गुजरात में जिस तरह से राहुल गांधी ने मंदिरों में दर्शन कर आम गुजराती मतदाता को प्रभावित करने का प्रयास किया था दिग्विजय सिंह ने यह कार्य काफी पहले आरंभ कर दिया है। 
गुजरात में जिस तरह से मतदाताओं ने जैसे तैसे भाजपा को जिताया है उससे कांग्रेस उत्साहित है और न केवल कांग्रेस बल्कि आम नागरिक भी यह कह रहे हैं कि गुजरात की जनता ने भाजपा को सबक सिखाया है। इस बात को हल्के में भाजपा बिल्कुल भी नहीं लेने वाली यह बात भी तय है परंतु आम मतदाता के मन में कहीं न कहीं यह बात जरुर है कि गुजरात में आम जनता ने वोटिंग पैटर्न को क्यों बदला और क्या कारण रहा कि अपने ही गढ़ में भाजपा को कम वोट मिले। आम जनता यह बात अच्छे से जानती है कि विधानसभा चुनावों की तरह लोकसभा चुनावों में वोट नहीं दिए जाते हैं और राज्य के हित में क्या करना चाहिए। दिग्विजयसिंह यह सभी बातें अच्छी तरह से जानते हैं और अगर वे ज्योतिरादित्य सिंधिया को आगे करते हैं तब निश्चित रुप से वे एक तीर से कई निशाने साध लेंगे। इससे कमलनाथ गुट कमजोर पड़ जाएगा और अगर कांग्रेस प्रदेश में अच्छा कर जाती है तब ज्योतिरादित्य और जयवर्धन दोनों के माथे पर सेहरा बंधेगा। आज भी राजे रजवाड़ों को लेकर ग्रामीण जनता में पहले जैसा ही भाव है इस कारण दोनों को चुनावों के दौरान काफी अच्छा फायदा मिल सकता है।
भाजपा भी चुप नहीं बैठने वाली
गुजरात चुनाव परिणामों के बाद से ही प्रदेश भाजपा के भीतर कई तरह के समीकरण चल पड़े हैं जिसमें प्रदेश अध्यक्ष को बदलने से लेकर कई अन्य बदलाव शामिल है। दिग्विजय सिंह की नर्मदा यात्रा को लेकर भाजपा पहले सजग नहीं हुई थी परंतु अब जिस प्रकार से दिग्विजयसिंह को जनसमर्थन मिल रहा है और वे लोगों को एक करते जा रहे हैं उससे भाजपा को भी चिंता होने लगी है कि अगर ंिवधानसभा चुनावों के पूर्व दिग्विजयसिंह नर्मदा किनारे वाले बेल्ट में ही किसान आंदोलन को पुन: सक्रिय करने में सफल हो गए तब मुश्किल भी हो सकती है। वहीं दूसरी ओर ज्योतिरादित्य सिंधिया को लेकर कांग्रेस कार्यकर्ता यह भी कहने लगे हैं कि अगर सिंधिया जी को अभी से मुख्यमंत्री के रुप में प्रोजेक्ट कर दिया और अगर कांग्रेस ने टिकट वितरण जल्दी कर स्थानीय संतुलन को संभाल लिया तब निश्चित रुप से कांग्रेस भाजपा को अच्छी टक्कर देगी। दिग्विजयसिंह नर्मदा यात्रा के बाद पत्ते खोलेंगे पर एक बात निश्चित है कि वे अपने बेटे का राजनीतिक भविष्य बनाने के लिए सिंधिया गुट से हाथ जरुर मिला लेंगे।