हड़ताल और आंदोलन का साल

इंदौर। विधानसभा चुनाव का यह साल हड़ताल और आंदोलन का साल बन कर सामने आ रहा है। साल की शुरूआत के दो माह भी पूरे नहीं हुए हैं और कहीं कर्मचारी संगठन तो कहीं अधिकारी भी अपनी मांगों को लेकर मैदान में आ चुके हैं या आने की तैयारी में हैं। आंदोलनों के बीच आम जनता परेशान हो रही है।स्वास्थ्य विभाग के संविदा कर्मचारियों की प्रदेशव्यापी हड़ताल का असर इंदौर में भी देखा जा रहा है। शासकीय अस्पतालों में व्यवस्थाएं चरमराने लगी हैं। कर्मचारियों का कहना है कि शासन पिछले तीन सालों से उनकी मांगों के निराकरण को लेकर केवल आश्वासन ही देता आ रहा है लेकिन इस बार तो अंतिम निर्णय करा कर ही रहेंगे। हड़ताल के कारण कई मरीजों डायलिसिस नहीं करा पाए। फार्मासिस्ट नहीं होने से दवाईयों के वितरण में परेशानी आ रही है। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों से लेकर जिला अस्पताल और एमवायएच तक में मरीज परेशान होते दिख रहे हैं। लड़ाई कर्मचारियों और शासन के बीच है तो आम लोगों को परेशानी क्यों हो रही है? मरीजों का कहना है कि उनके पास इतना पैसा नहीं है कि वे प्राइवेट अस्पतालों में इलाज करा सकें। उनके लिए तो शासकीय अस्पताल ही सहारा हैं और अब यहां भी उपचार में परेशानी आ रही है। संविदा कर्मी हड़ताल पर हैं तो शासन को पहले से ही वैकल्पिक व्यवस्थाएं करनी थीं, जो नहीं की गर्ईं। 
वाणिजियक कर विभाग के राजपत्रित व कार्यपालिक अधिकारियों द्वारा भी हड़ताल की जा रही है। वे वेतन विसंगति दूर करने की मांग कर रहे हैं। अगले माह बिजलीकर्मियों और अधिकारियों ने हड़ताल की चेतावनी दी है। कुल मिला कर कर्मचारी संगठन इस वर्ष शासन पर दबाव डाल कर अपनी मांगों के निराकरण की कोशिश करेंगे। यह क्रम चुनाव आचार संहिता लागू होने के पहले तक जारी रहेगा। शासन ने पिछले कई वर्षोें से जो मुद्दे लटका कर रखे हैं वे सब इस वर्ष गले की हड्डी साबित होंगे। साथ जनता के लिए परेशानी का कारण बनेंगे। समय रहते इन मुद्दों का निराकरण नहीं किया गया तो चुनाव के ठीक पहले ये और बड़े रूप में सामने आएंगे।