आतंक से लोहा लेने का धर्माधिकार

अनुराग तागड़े
इंदौर। हिंसा और आतंकवाद के विरुद्ध लोहा लेने का अधिकार आम व्यक्ति को है और जब कोई अपना आतंवाद में जान गवां बैठता है तब व्यक्ति के भीतर बदला लेने की भावना प्रबल हो जाती है। यूसीसी अॉडिटोरियम में सानंद मराठी नाट्यस्पर्धा का शुभारंभ हुआ और पहले ही दिन अहमदाबाद की संस्था रंगयोग के कलाकारों ने नाटक धर्माधिकार की शानदार प्रस्तुति दी। नाटक में संघर्ष और अपने धर्माधिकार का प्रयोग करने की गाथा है।
कहानी: मुंबई में रहने वाले एक दंपती के दो पुत्र है और एक आतंकी घटना में एक पुत्र की मृत्यु हो जाती है वही दूसरा पुत्र कोमा में चला जाता है। आतंकी घटना के बाद दंपती के अपने पुत्र की देखभाल अस्पताल में तो करते ही है परंतु उनके मन में दोनों आतंकियों से बदला लेने की बात भी रहती है। एक आतंकी जेल में रहता है और दूसरा अस्पताल में ही कोमा में रहता है। किस प्रकार से एक पिता अपने पुत्र की मृत्यु का बदला लेता है यह बताया गया है। जेलर से दोस्ती कर एक आतंकी को समाप्त किया जाता है वही दूसरी ओर जिस जेल में आतंकी भर्ती होता है वहां के स्टॉफ की सहानुभूति प्राप्त कर दुसरे आतंकी से भी बदला लिया जाता है। 
निर्देशन: नाटक धर्माधिकार का लेखन मिलिंद पाध्ये ने किया है और निर्देशन भी उन्होंने ही किया है। इसके अलावा नेपथ्य प्रकाश योजना भी उनकी ही है। नाटक की कहानी के अनुरुप उन्होंने एक के बाद एक होने वाले घटनाक्रमों को बेहतरीन तरीके से प्रस्तुत किया है और नाटक में रोमांच बनाए रखा है।
अभिनय: नाटक में पिता की भूमिका मिलिंद पाध्ये ने ही निभाई है और उन्होंने अपने किरदार के साथ न्याय किया है। वही माँ की भूमिका पल्लवी नाईक ने निभाई है। इसके अलावा निलेश नाईक, आरती मुळे, ओमकार पळसुळ ने भी शानदार भूमिका निभाई है जिसमें ओमकार पळसुळे ने कर्मचारी सलीम की भूमिका अदा की है।