इतिहास में पहली बार धारा-7 का इस्तेमाल

नई दिल्ली। आरबीआई की स्वायत्तता के मुद्दे पर केंद्र तथा आरबीआई के बीच जारी विवाद अब और गहरा गया है। मोदी सरकार ने रिजर्व बैंक आॅफ इंडिया (आरबीआई) के खिलाफ आरबीआई एक्ट 1934 के तहत मिले अधिकारों का उपयोग करते हुए आदेश जारी कर दिया है। एक्ट के तहत केंद्र सरकार को मिले इस अधिकार का इस्तेमाल देश के इतिहास में पहली बार किया गया है। आरबीआई एक्ट के सेक्शन 7 के तहत सरकार को यह अधिकार है कि वह सार्वजनिक हित के मुद्दे पर आरबीआई को सीधे निर्देश दे सकती है। इस निर्देश को आरबीआई मानने से इंकार नहीं कर सकता। अब आशंका जताई जा रही है कि सरकार और आरबीआई के बीच दरार बढ़ सकती है।
आदेश जारी होने के बाद आरबीआई के गवर्नर उर्जित पटेल आज वित्त मंत्री अरुण जेटली से मिलेंगे। उल्लेखनीय है कि सरकार ने पिछले सप्ताह आरबीआई गवर्नर को पत्र भेज कर नॉन-बैंकिंग फाइनेंशियल कंपनियों के लिए लिक्विडिटी, कमजोर बैंकों को पूंजी और लघु एवं मध्यम उद्योगों को कर्ज प्रदान करने का निर्देश दिया था। इसके बाद आरबीआई के डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने आरबीआई की स्वायत्तता पर सवाल उठाए थे। इसके बाद केंद्र सरकार ने उक्त अधिकार का उपयोग करते हुए आदेश जारी कर दिया। आरबीआई के 83 वर्ष के इतिहास में किसी सरकार ने पहली बार उक्त अधिकार का उपयोग किया है।
उल्लेखनीय है कि कुछ बिजली उत्पादक कंपनियों ने आरबीआई के 12 फरवरी को जारी सर्कुलर को इलाहाबाद हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। इस सर्कुलर में डिफॉल्ट हो चुके लोन को रिस्ट्रक्चरिंग स्कीम में डालने से आरबीआई द्वारा रोका गया है। आरबीआई के सलहाकार ने कोर्ट में कहा था कि कानूनी तौर पर सरकार आरबीआई को आदेश दे सकती है। इसके बाद कोर्ट ने आदेश में कहा था कि सरकार ऐसा निर्देश देने पर विचार कर सकती है।
आर्थिक मामलों के विशेषज्ञों के अनुसार सरकार के इस कदम से आरबीआई की स्वायत्तता को लेकर केंद्र सरकार की मंशा पर सवाल खड़े हो सकते हैं क्योंकि सेक्शन 7 के इस्तेमाल के बाद आरबीआई के पास अपनी मर्जी से फैसले करने की गुंजाइश बहुत कम रह जाती है। विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि अब यह आशंका बढ़ गई है कि आगे आने वाली सरकारें आरबीआई के साथ छोटे-छोटे मुद्दों पर भी मतभेद होने पर इस सेक्शन का इस्तेमाल करते हुए अपना अजेंडा थोपने लगेंगी।